अगर आप आध्यात्मिक शांति या भगवान विष्णु के निकटता की तलाश में हैं, तो वैकुंठ द्वार एक महत्वपूर्ण जगह है। यह द्वार उत्तराखंड के प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है जहाँ भक्त लोग मन‑शांति और मोक्ष की उम्मीद लाते हैं। यहाँ का माहौल, पवित्र ध्वनि और परम्परागत रीति‑रिवाज सीधे दिल को छू लेते हैं।
कहानी के अनुसार, वैकुंठ वह स्वर्ग है जहाँ भगवान विष्णु अपने भक्तों का स्वागत करते हैं। इस द्वार को खोलने वाला पहला मनुष्य राजा इंद्र था, जिसे दैत्य-राक्षसों से बचाने के लिए देवताओं ने बनाया था। मंदिर में मौजूद शिल्प और मूर्तियां इस कथा को दर्शाते हैं, इसलिए हर साल बड़ी भीड़ आती है।
भक्त अक्सर कहते हैं कि द्वार पर कदम रखते ही एक अजीब सी ऊर्जा महसूस होती है। यह अनुभव व्यक्तिगत होता है, लेकिन कई लोग इसे जीवन बदलने वाला बताते हैं। यही कारण है कि वैकुंठ द्वार को ‘आध्यात्मिक चक्र’ माना जाता है।
सबसे पहले यात्रा का सही समय चुनें। शरद ऋतु (अक्टूबर‑नवंबर) में मौसम ठंडा और साफ रहता है, जिससे दर्शन आराम से हो पाते हैं। यदि आप भीड़ से बचना चाहते हैं तो सोमवार या मंगलवार के दिन जाएँ; ये दिन कम लोगों वाले होते हैं।
आगमन का सबसे आसान तरीका हवाई जहाज़ या ट्रेन से देहरादून पहुँचना है, फिर स्थानीय टैक्सी या ऑटो से वैकुंठ द्वार तक पहुँचें। रास्ते में छोटे‑छोटे गाँवों की सुंदरता देख सकते हैं, इसलिए थोड़ी देर रोक कर फोटोज़ लेना न भूलें।
द्वार में प्रवेश के लिये हल्के कपड़े पहनें और जूते निकालकर सादे चप्पल रखें। मंदिर के भीतर कैमरा या मोबाइल का प्रयोग अक्सर प्रतिबंधित रहता है, इसलिए पहले से तैयार रहें। कुछ विशेष पूजा (अर्थ) करने की इच्छा हो तो प्रबंधक से संपर्क करके अग्रिम बुकिंग करवा सकते हैं।
द्वार के आसपास दो मुख्य आकर्षण हैं – ‘श्री विष्णु मंदिर’ और ‘संत निकेतन आश्रम’। दोनों जगहें एक ही रास्ते पर स्थित हैं, इसलिए समय बचाने के लिये एक साथ देखना सुविधाजनक रहता है। यदि आप आध्यात्मिक वार्तालाप चाहते हैं तो आश्रम में आयोजित होने वाले समूह भजन या प्रवचन सुन सकते हैं।
भोजन की बात करें तो स्थानीय ‘धाबा’ में राजमा चावल, आलू के पराठे और गरम-गरम लस्सी मिलती है। ये खाने से यात्रा का मज़ा दोगुना हो जाता है क्योंकि स्वाद भी असली और पोषक होते हैं। पानी बोतलें हमेशा साथ रखें; मंदिर परिसर में साफ पानी उपलब्ध नहीं रहता।
यात्रा के बाद अगर आप शांति बनाए रखना चाहते हैं तो कुछ आसान अभ्यास कर सकते हैं – जैसे कि रोज़ 10‑15 मिनट ध्यान, हल्की योगासन और सकारात्मक सोच। वैकुंठ द्वार का अनुभव आपको इन आदतों को जारी रखने की प्रेरणा देगा।
अंत में यह कहना सही रहेगा कि वैकुंठ द्वार सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आत्मा के लिए रीसेट बटन जैसा है। आप चाहे पहली बार आएँ या कई बार, यहाँ हर यात्रा कुछ नया सिखाती है। तो अपनी बैग पैक करें और इस पवित्र जगह का आनंद उठाएँ – आपका मन और शरीर दोनों ताजगी महसूस करेंगे।
तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में वैकुंठ द्वार दर्शनों के लिए टिकटों की वितरण के दौरान हुई भगदड़ में 6 श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 40 अन्य घायल हो गए। मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने घटना पर गहरी चिंता व्यक्त की और घायल लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधा देने का निर्देश दिया। इस दुखद घटना ने प्रशासनिक तैयारियों में खामियों की ओर ध्यान खींचा है।
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