आपने शायद टेलीविजन या समाचार में सिज़ोफ्रेनिया का नाम सुना होगा, पर इसका असली मतलब क्या होता है, ये अक्सर अस्पष्ट रहता है। आसान शब्दों में कहें तो यह एक ऐसा मानसिक रोग है जिसमें सोच, भावनाएँ और व्यवहार में बहुत बड़े बदलाव आ जाते हैं। अक्सर लोग इस बीमारी को सिर्फ ‘पागलपन’ समझते हैं, लेकिन सच्चाई बहुत अलग है।
सिज़ोफ्रेनिया के तीन मुख्य समूह के लक्षण होते हैं: सोच‑सम्बंधी (जैसे भ्रम), भावनात्मक (जैसे उदासी या असामान्य खुशी) और व्यवहारिक (जैसे सामाजिक अलगाव)। सबसे आम संकेत है भ्रम – यानी चीज़ों को ऐसी तरह देखना या सुनना जो वास्तव में नहीं होती, जैसे आवाजें सुनाई देना। दूसरा अक्सर देखा जाने वाला लक्षण है हैलुसिनेशन, जहाँ व्यक्ति बिना किसी कारण के आवाज़ या छवि का अनुभव करता है।
इन्हीं के साथ डिल्यूशन (विचारों में गड़बड़ी) भी होता है, जैसे कि एक ही बात को बार‑बार दोहराना या असंबंधित बातों को जोड़ना। सामाजिक तौर पर लोग अक्सर खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं; दोस्त‑परिवार से दूरी बना लेते हैं और कामकाज में ध्यान नहीं लग पाता। अगर आप या आपका कोई परिचित इन संकेतों को लगातार देख रहा है, तो जल्दी डॉक्टर से मिलें।
सिज़ोफ्रेनिया का इलाज पूरी तरह रोग को खत्म नहीं करता, पर सही दवाओं और थैरेपी से लक्षणों को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। सबसे पहले डॉक्टर एंटी‑साइकोटिक दवा लिखते हैं – ये दवाएं भ्रम और हलुसिनेशन को कम करती हैं। दवा के साथ कॉग्निटिव बिहेवियरल थैरेपी (CBT) बहुत मददगार होती है; यह सोचने के तरीके को बदलती है और रोज़मर्रा की समस्याओं से निपटने का तरीका सिखाती है।
साथ ही परिवारिक समर्थन भी अहम है। अगर घर में कोई इस बीमारी से जूझ रहा है, तो उसके साथ धीरज रखकर बात करें, उसकी भावनाओं को समझें और डॉक्टर के निर्देशों का पालन करवाएँ। कई बार छोटे‑छोटे जीवनशैली बदल जैसे नियमित नींद, व्यायाम और संतुलित भोजन भी लक्षणों को हल्का कर देते हैं।
यदि आप या आपका कोई करीबी सिज़ोफ्रेनिया से ग्रस्त है, तो याद रखें: समय पर इलाज और लगातार फॉलो‑अप से जीवन की गुणवत्ता में बड़ा सुधार हो सकता है। डॉक्टर से मिलने के बाद दवा का असर दिखने में कुछ हफ्ते लग सकते हैं – इसलिए धैर्य रखना ज़रूरी है।
अंत में, यह समझना जरूरी है कि सिज़ोफ्रेनिया किसी की गलती नहीं है और इसे शर्म की बात नहीं माना जाना चाहिए। सही जानकारी, समर्थन और उपचार के साथ रोगियों को समाज में फिर से सक्रिय भूमिका निभाने का मौका मिल सकता है। अगर आप इस बारे में और जानना चाहते हैं तो हमारे साइट पर अन्य लेख भी पढ़ सकते हैं – हर सवाल का जवाब यहीं मिलेगा।
ऑस्ट्रेलिया की रिसर्च के मुताबिक, बिल्ली पालने वालों में सिज़ोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों का खतरा करीब दोगुना पाया गया है। 17 स्टडी के डेटा से यह संबंध सामने आया है, हालांकि इसका साफ कारण अभी सामने नहीं आया है। विशेषज्ञों का मानना है कि पर्यावरणीय कारक भी मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल सकते हैं।
आगे पढ़ें