बिल्ली पालना और सिज़ोफ्रेनिया का खतरा: ऑस्ट्रेलियाई शोध में बड़ा खुलासा

बिल्ली पालना और सिज़ोफ्रेनिया का खतरा: ऑस्ट्रेलियाई शोध में बड़ा खुलासा अप्रैल, 22 2025

क्या बिल्ली पालने से बढ़ता है मानसिक विकार का जोखिम?

ऑस्ट्रेलियाई शोध से मिली नई जानकारी ने बिल्ली पालने और गंभीर मानसिक विकारों के बीच की असली कड़ी को उजागर कर दिया है। बीते 40 सालों में 17 अलग-अलग अध्ययनों से जो डेटा मिला, उसके मुताबिक जो लोग बचपन से ही बिल्लियों के संपर्क में रहते हैं, उनमें सिज़ोफ्रेनिया और संबंधित मानसिक बीमारियों का खतरा करीब दोगुना पाया गया है। इन बीमारियों में सिज़ोफ्रेनिया, शिजोएफेक्टिव डिसऑर्डर और मनोरोग जैसी समस्याएं शामिल हैं।

इस अध्यन में यह भी पाया गया कि बिल्ली पालने, बिल्ली के काटने या उसके सीधे संपर्क से जुड़े लोगों में शामिल होने पर सिज़ोफ्रेनिया का जोखिम बढ़ जाता है। यहां तक कि जब शोधकर्ताओं ने उम्र, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और गर्भावस्था से जुड़े दूसरे जोखिमों का भी ध्यान रखा, तब भी खतरा काफी ऊपर रहा। जहां बिना एडजस्टमेंट (अन्य कारकों को बिना जोड़े) के यह संख्या 2.35 थी, वहीं पूर्णतः एडजस्ट करने के बाद भी ये 2.24 रही।

समझें क्या है वजह और क्या बोले शोधकर्ता?

समझें क्या है वजह और क्या बोले शोधकर्ता?

अब सवाल उठता है कि आखिर बिल्लियों का मानसिक रोगों से क्या संबंध है? रिसर्चर्स ने संभावना जताई है कि इसके पीछे Toxoplasma gondii नाम का परजीवी हो सकता है, जो बिल्लियों के मल में पाया जाता है और इंसान में पहुंच जाने पर दिमाग को प्रभावित करता है। हालांकि, इस मेटा-एनालिसिस में इसका प्रत्यक्ष परीक्षण नहीं हुआ, तो वैज्ञानिक तौर पर पूरी तरह तय नहीं कहा जा सकता है कि केवल टोक्सोप्लास्मा गोंडी ही इसका जिम्मेदार है।

शोधकर्ता खुद मानते हैं कि अध्ययन में शामिल अधिकांश रिपोर्ट्स की गुणवत्ता और उनके तरीकों में विविधता थी, जिससे सीधी-सीधी वजह पता लगाना अभी बाकी है। फिर भी, इतना साफ है कि बचपन में बिल्ली के साथ समय बिताना या उसे घर में पालना मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में एक बड़ा रिस्क फैक्टर बन सकता है। खासकर उन घरों में जहां छोटे बच्चे हैं, वहां इस जानकारी को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

इसी वजह से वैज्ञानिक मां-बाप को सलाह देते हैं कि अगर घर में पहले से परिवार के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े केस हैं, तो खास सतर्कता बरती जाए। बच्चों के इम्यून सिस्टम की मजबूती, साफ-सफाई और बिल्लियों के संपर्क में कम-से-कम रहना, इस रिस्क को कम कर सकता है। फिलहाल, इस संबंध में ज्यादा ठोस विवेचन और रिसर्च की जरूरत बनी हुई है, ताकि सही कारण को पूरी दुनिया के सामने लाया जा सके।

5 टिप्पणि

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    Abinesh Ak

    अप्रैल 23, 2025 AT 06:32
    अरे भाई, बिल्ली पालने से सिज़ोफ्रेनिया? तो फिर जिनके घर में बिल्ली है वो सब बौद्धिक रूप से बीमार हैं? ये रिसर्च तो बस एक और गूगल ट्रेंड के लिए बनाई गई है। टोक्सोप्लास्मा गोंडी? बस एक परजीवी को डरावना बना दिया, और फिर सबको बिल्ली छोड़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। बिल्ली के बिना जीवन? बेकार।
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    Ron DeRegules

    अप्रैल 24, 2025 AT 03:21
    इस अध्ययन में जो डेटा दिया गया है वो वास्तव में गंभीर है और इसका अर्थ यह नहीं है कि बिल्ली खतरनाक है बल्कि यह है कि हमारे जीवनशैली में एक गहरा असंगति है जो हम नजरअंदाज कर रहे हैं जैसे बच्चों का बाहरी वातावरण से संपर्क कम होना या घर में बिल्ली के मल का नियमित रूप से साफ न होना या फिर इम्यून सिस्टम की कमजोरी जो आजकल बहुत सारे बच्चों में देखी जा रही है और इसका सीधा संबंध टोक्सोप्लास्मा गोंडी के अंदर प्रवेश के साथ है जो दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर को बदल सकता है और यह बहुत ज्यादा गंभीर है क्योंकि इसका प्रभाव धीरे-धीरे और अदृश्य रूप से होता है और इसलिए हमें इसे अनदेखा नहीं करना चाहिए और बच्चों के लिए साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए और बिल्ली के साथ बाहर खेलने के बजाय उन्हें अंदर ही रखना चाहिए जिससे उनकी इम्यूनिटी बनी रहे और यह बहुत जरूरी है क्योंकि आजकल के बच्चे बहुत कम बाहर जाते हैं और इसलिए उनका शरीर बहुत कमजोर हो रहा है
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    Manasi Tamboli

    अप्रैल 24, 2025 AT 15:08
    क्या हम अपने दिमाग को बिल्ली के आँखों में देखकर खो रहे हैं? जब हम बिल्ली को पालते हैं तो हम अपने अंदर के अकेलेपन को उसकी शांति में ढूंढते हैं... लेकिन क्या यही शांति हमारे दिमाग के लिए जहर है? क्या वो जो हम समझते हैं प्यार, वो असल में एक बायोलॉजिकल हैक है? टोक्सोप्लास्मा ने हमारे दिमाग को बिल्ली के प्रति लगाव के लिए रिप्रोग्राम कर दिया है... और हम इसे प्यार कह रहे हैं।
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    Ashish Shrestha

    अप्रैल 25, 2025 AT 11:17
    यह अध्ययन विधिगत रूप से अपर्याप्त है। नमूना आकार, विषयों की विविधता, और कॉन्फाउंडर्स का नियंत्रण अपर्याप्त है। यहां तक कि परिणाम भी एक आंकड़े के रूप में दिखाए गए हैं जो कि व्यावहारिक रूप से अर्थहीन है। 2.24 का ऑड्स रेशियो एक बहुत ही कम प्रभाव है, जो जीवनशैली के अन्य कारकों से बेहतर रूप से समझा जा सकता है। इस तरह के अध्ययनों से लोगों को अनावश्यक रूप से डराया जा रहा है।
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    Mallikarjun Choukimath

    अप्रैल 25, 2025 AT 17:55
    यह एक अत्यंत विचित्र और दर्शनात्मक रूप से अर्थपूर्ण अवलोकन है। बिल्ली, एक ऐसा प्राणी जिसने अपने आप को मानव सभ्यता के अंदर अंकुरित कर लिया है, एक अदृश्य शक्ति के रूप में हमारे अवचेतन के साथ नृत्य करती है। टोक्सोप्लास्मा गोंडी ने शायद हमारे अंतर्ज्ञान को बदल दिया है - हम बिल्ली को प्यार करते हैं क्योंकि वह हमारे दिमाग को नियंत्रित कर रही है। और क्या यही नहीं है सिज़ोफ्रेनिया का असली रूप? एक दिमाग जो अपने आप को एक अन्य अस्तित्व के साथ साझा कर रहा है। क्या हम बिल्ली को नहीं पाल रहे, बल्कि उसके द्वारा पाले जा रहे हैं?

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