बिल्ली पालना और सिज़ोफ्रेनिया का खतरा: ऑस्ट्रेलियाई शोध में बड़ा खुलासा
अप्रैल, 21 2025
क्या बिल्ली पालने से बढ़ता है मानसिक विकार का जोखिम?
ऑस्ट्रेलियाई शोध से मिली नई जानकारी ने बिल्ली पालने और गंभीर मानसिक विकारों के बीच की असली कड़ी को उजागर कर दिया है। बीते 40 सालों में 17 अलग-अलग अध्ययनों से जो डेटा मिला, उसके मुताबिक जो लोग बचपन से ही बिल्लियों के संपर्क में रहते हैं, उनमें सिज़ोफ्रेनिया और संबंधित मानसिक बीमारियों का खतरा करीब दोगुना पाया गया है। इन बीमारियों में सिज़ोफ्रेनिया, शिजोएफेक्टिव डिसऑर्डर और मनोरोग जैसी समस्याएं शामिल हैं।
इस अध्यन में यह भी पाया गया कि बिल्ली पालने, बिल्ली के काटने या उसके सीधे संपर्क से जुड़े लोगों में शामिल होने पर सिज़ोफ्रेनिया का जोखिम बढ़ जाता है। यहां तक कि जब शोधकर्ताओं ने उम्र, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और गर्भावस्था से जुड़े दूसरे जोखिमों का भी ध्यान रखा, तब भी खतरा काफी ऊपर रहा। जहां बिना एडजस्टमेंट (अन्य कारकों को बिना जोड़े) के यह संख्या 2.35 थी, वहीं पूर्णतः एडजस्ट करने के बाद भी ये 2.24 रही।
समझें क्या है वजह और क्या बोले शोधकर्ता?
अब सवाल उठता है कि आखिर बिल्लियों का मानसिक रोगों से क्या संबंध है? रिसर्चर्स ने संभावना जताई है कि इसके पीछे Toxoplasma gondii नाम का परजीवी हो सकता है, जो बिल्लियों के मल में पाया जाता है और इंसान में पहुंच जाने पर दिमाग को प्रभावित करता है। हालांकि, इस मेटा-एनालिसिस में इसका प्रत्यक्ष परीक्षण नहीं हुआ, तो वैज्ञानिक तौर पर पूरी तरह तय नहीं कहा जा सकता है कि केवल टोक्सोप्लास्मा गोंडी ही इसका जिम्मेदार है।
शोधकर्ता खुद मानते हैं कि अध्ययन में शामिल अधिकांश रिपोर्ट्स की गुणवत्ता और उनके तरीकों में विविधता थी, जिससे सीधी-सीधी वजह पता लगाना अभी बाकी है। फिर भी, इतना साफ है कि बचपन में बिल्ली के साथ समय बिताना या उसे घर में पालना मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में एक बड़ा रिस्क फैक्टर बन सकता है। खासकर उन घरों में जहां छोटे बच्चे हैं, वहां इस जानकारी को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
इसी वजह से वैज्ञानिक मां-बाप को सलाह देते हैं कि अगर घर में पहले से परिवार के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े केस हैं, तो खास सतर्कता बरती जाए। बच्चों के इम्यून सिस्टम की मजबूती, साफ-सफाई और बिल्लियों के संपर्क में कम-से-कम रहना, इस रिस्क को कम कर सकता है। फिलहाल, इस संबंध में ज्यादा ठोस विवेचन और रिसर्च की जरूरत बनी हुई है, ताकि सही कारण को पूरी दुनिया के सामने लाया जा सके।
Abinesh Ak
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