आपने कभी मॉक ड्रिल सुना होगा, लेकिन इसका असली मतलब समझते हैं? ये एक अभ्यास है जो वास्तविक आपदा की स्थिति में आपकी प्रतिक्रिया को तेज और सटीक बनाता है। चाहे घर हो या ऑफिस, मॉक ड्रिल से हर कोई जानता है कि कब कैसे कदम उठाने हैं।
पहली बात तो यह है कि असली आपदा में घबराहट नहीं होती जब तक आपने पहले ही अभ्यास किया हो। मॉक ड्रिल से आप:
सरकार भी स्कूल, अस्पताल और बड़ी कंपनियों को सालाना मॉक ड्रिल कराने का निर्देश देती है – यही कारण है कि यह इतना जरूरी माना जाता है।
1. लक्ष्य तय करें – आप कौन सी स्थिति (अग्नि, भूकंप, जलप्रलय) का अभ्यास करेंगे? एक ही बार में बहुत सारी चीज़ें न रखें।
2. टीम बनाएं – हर व्यक्ति की जिम्मेदारी लिखें: एग्जिट खोजना, फर्स्ट एड देना या अलार्म बंद करना। भूमिका स्पष्ट होने से भ्रम नहीं होगा।
3. समय तय करें – अचानक नहीं, बल्कि एक पूर्व निर्धारित तारीख पर ड्रिल रखें। इससे लोग तैयार होते हैं और प्रैक्टिस भी सच्ची लगती है।
4. वास्तविक माहौल बनाएं – अलार्म बजाएँ, धूम्रपान सिम्युलेट करें या हल्की ध्वनि प्रभाव डालें। जितना असली जैसा होगा, सीख उतनी बेहतर होगी।
5. मूल्यांकन और सुधार – ड्रिल के बाद 10‑15 मिनट बैठें और पूछें क्या अच्छा रहा, क्या नहीं। नोट्स बनाएं और अगली बार उन पर काम करें।
इन पाँच कदमों से आप एक बेसिक लेकिन प्रभावी मॉक ड्रिल कर सकते हैं। अगर आपका ऑफिस बड़ा है तो कई टीमों के लिए अलग‑अलग सत्र रख सकते हैं। स्कूल में बच्चों को खेल‑के तौर पर सीखाने से डर कम रहता है और याददाश्त बेहतर रहती है।
एक बात ध्यान रखें – मॉक ड्रिल को बार-बार दोहराएं। एक बार की कोशिश से सब कुछ नहीं बदलता। साल में कम से कम दो‑तीन बार अभ्यास करने से दिमाग में प्रक्रिया बनी रहेगी।
अगर आप घर पर रहने वाले हैं, तो सबसे पहले अपने परिवार के सभी सदस्यों को बताएं कि निकास दरवाज़ा कहाँ है और बाहर कैसे निकलना है। बच्चों को खेल‑के रूप में यह सिखाने से वे इसे गंभीरता से ले लेंगे। फायर एक्स्टिंग्विशर या बेसिक फर्स्ट एड किट की जगह भी पहले से तय कर रखें, ताकि आपातकाल में कोई घबराए नहीं।
अंत में यही कहा जा सकता है कि मॉक ड्रिल सिर्फ एक अभ्यास नहीं, बल्कि सुरक्षा का निवेश है। हर बार जब आप इसे करते हैं, तो आपकी टीम या परिवार के जीवन की रक्षा की संभावना बढ़ जाती है। अब देर न करें – अगली हफ्ते ही अपनी पहली मॉक ड्रिल शेड्यूल करिए और खुद देखिए कि कैसे छोटी तैयारी बड़ी राहत बनती है।
भरतपुर बस स्टैंड पर आतंकवादी हमले के इनपुट के बाद प्रशासन ने मॉक ड्रिल करके सुरक्षा इंतजामों की गहराई से जांच की। पुलिस, सिविल डिफेंस और मेडिकल टीमें पूरी मुस्तैदी से जुटीं और इमरजेंसी स्थितियों में तालमेल व रेस्क्यू सिस्टम को जांचा परखा गया। इसमें नए सीखने को मिले और सुरक्षा पर भरोसा भी बढ़ा।
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