भरतपुर बस स्टैंड पर आतंकवादी अलर्ट के बीच मॉक ड्रिल में सुरक्षा इंतजामों की असली परीक्षा
मई, 29 2025
भरतपुर बस स्टैंड: बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों के बीच मॉक ड्रिल की हकीकत
सोचिए, भरतपुर बस स्टैंड जैसी भीड़भाड़ वाली जगह पर अचानक आतंकी हमले की आशंका आ जाए। लोग घबरा सकते हैं, अफरा-तफरी मच सकती है। लेकिन क्या प्रशासन ऐसी स्थिति के लिए वाकई तैयार है? इसी सवाल के जवाब में हाल ही में बस स्टैंड पर मॉक ड्रिल की गई।
इंटेलिजेंस अलर्ट मिलते ही सुरक्षा एजेंसियां एक्शन मोड में आ गईं। इस ड्रिल में पुलिस, सिविल डिफेंस की टीमें, मेडिकल स्टाफ और प्रशासनिक अफसर जुटे। जैसे ही सायरन बजा, पहले घबराए-बगैर सभी यात्रियों को स्टैंड से जल्दी-से-जल्दी बाहर निकाला गया। पुलिस की टीम चारों ओर फैली, हर कोंने की तलाशी ली गई। कुछ लोग जो भाग नहीं सके, उन्हें स्ट्रेचर पर मेडिकल टीम ने बाहर पहुंचाया।
ड्रिल का सबसे बड़ा मकसद था - अलग-अलग विभागों में तालमेल। अलग कम्युनिकेशन चैनल बनाया गया जिसमें वायरलेस, मोबाइल और मैसेजिंग ग्रुप्स के जरिए लगातार सूचनाएं साझा की गईं। हर टीम को पहले से तय जिम्मेदारी दे दी गई थी—सिविल डिफेंस ने मौके पर भीड़ संभाली, पुलिस ने सुरक्षाबल मोर्चा रखा और मेडिकल टीम ने इमरजेंसी में घायलों को फर्स्ट एड दी।
ड्रिल के दौरान कई ऐसे फीडबैक भी मिले, जिनसे सुरक्षा को मजबूत किया जा सकता है। मसलन, भीड़ को कंट्रोल करने में समय जरूर लगा, लेकिन पुलिस-प्रशासन ने रफ्तार पकड़ी। कुछ लोगों ने अफवाह फैलाई, जिसे तुरंत रोक दिया गया। मेडिकल टीम अलर्ट रही और फर्स्ट एड किट्स की कमी नहीं पड़ी।
बस स्टैंड पर सिक्योरिटी का नया चेहरा
ऐसी मॉक ड्रिल सिर्फ एक अभ्यास नहीं, बल्कि प्रशासन की सक्रियता और सतर्कता की तस्वीर है। रूटीन से बाहर निकलकर अचानक की गई यह ड्रिल साफ दिखाती है कि भरतपुर जैसे ट्रांसपोर्ट हब में अब सुरक्षा हल्के में नहीं ली जाती। इससे न सिर्फ आम जनता को भरोसा मिलता है, बल्कि पूरी व्यवस्था का रियल टाइम टेस्ट भी हो जाता है।
कुछ अफसरों का कहना था—इस तरह के मॉक ड्रिल लगातार होते रहें, तो असली संकट में नुकसान कम होगा। कुछ यात्रियों ने बताया कि उन्हें पहले डर लगा, लेकिन बाद में प्रशासन की चुस्ती देख अच्छा महसूस हुआ। बस स्टैंड के कारोबारी भी अब सुरक्षा को लेकर ज्यादा सहयोग करने लगे हैं।
आखिरकार, यह मॉक ड्रिल उन अनदेखी खामियों को उजागर करती है, जिन्हें वक्त रहते दुरुस्त किया जा सकता है। हर टीम के लिए इसका मतलब सिर्फ फॉर्मेलिटी नहीं, बल्कि असली परीक्षा है—कहां सुधार करना है, कैसे कम वक्त में ज्यादा सुरक्षा देनी है। अब उम्मीद की जा रही है कि भरतपुर ही नहीं, प्रदेश के दूसरे पब्लिक ट्रांसपोर्ट सेंटर भी इसी तरह अपडेट होंगे।
Hitender Tanwar
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