अहिंसा का मतलब है बिना किसी को चोट पहुँचाए या मार‑पीट किए अपने लक्ष्य को हासिल करना। यह सिर्फ़ ‘न नहीं’ कहना नहीं, बल्कि सकारात्मक तरीका से बात करना, संवाद बनाना और समस्याओं को सुलझाना है। अगर हम रोज़ की छोटी‑छोटी झगड़ों में भी अहिंसक राह चुनें तो बड़े बदलाव आसान हो जाते हैं।
भारत ने अहिंसा को विश्व स्तर पर दिखाया जब महात्मा गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बिना हथियार उठाए आंदोलन चलाया। उनका ‘सत्याग्रह’ और ‘असहयोग’ ने लाखों लोगों को एक साथ लाया और अंत में आज़ादी दिलाई। इसी तरह दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला ने भी हिंसा से दूर रहकर रंगभेद के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी, जिससे दुनिया ने देखा कि बिना बल प्रयोग के भी बड़ी जीत हासिल की जा सकती है।
अहिंसा सिर्फ बड़े आंदोलन तक सीमित नहीं है; यह हमारे घर‑आँगन, स्कूल और ऑफिस में भी काम आ सकता है। जब कोई बात से असहमत हो, तो आवाज़ उठाएँ लेकिन शांति से—‘मैं समझता हूँ, पर मैं ऐसा देखता हूँ’ कहें। सोशल मीडिया पर भी तर्कसंगत पोस्ट लिखें, गुस्से में नहीं. अगर किसी को गलती दिखानी हो, तो व्यक्तिगत अपमान के बजाय तथ्य पेश करें।
एक और तरीका है ‘सक्रिय सुनना’। सामने वाले की बात पूरी तरह सुनें, बीच‑बीच में सवाल पूछें, फिर अपनी राय रखें। इससे दोनों पक्षों को समझ बनती है और झगड़े कम होते हैं। कामकाजी जगह पर टीम मीटिंग में भी यही लागू होता है—एक दूसरे के विचार को सम्मान दें, तब ही बेहतर समाधान निकलता है।
बच्चों को अहिंसा सिखाने से भविष्य सुरक्षित रहेगा। जब बच्चा छोटा‑छोटा झगड़ा करता है, तो उसे हिंसक नहीं, बल्कि ‘शांतिपूर्ण तरीके’ दिखाएँ—जैसे खेल के नियम बदलना या टर्न‑टेबल की तरह बात करना। इससे वह बड़ा होकर भी शांति को अपनाएगा और दूसरों में असर डालेगा।
समाज में अहिंसा का प्रचार करने के लिए हम छोटे‑छोटे समूह बना सकते हैं—पड़ोस में वार्तालाप क्लब, स्कूल में संवाद सत्र या ऑनलाइन फ़ोरम जहाँ लोग बिना डर के अपनी बात रख सकें। इन जगहों पर ‘हिंसात्मक शब्दों को नहीं, समाधान खोजने की कोशिश’ का नियम बनाएँ। यह नियम धीरे‑धीरे बड़े समुदाय में फैलता है।
ध्यान रखें कि अहिंसा आसान नहीं; कभी‑कभी गुस्सा आता है, लेकिन वही समय इसे रोकना ज़रूरी होता है। गहरी साँस लें, एक मिनट रुकें और फिर जवाब दें। अगर आप तुरंत प्रतिक्रिया दे देंगे तो अक्सर बात बिगड़ जाती है। थोड़ी देर रुक कर सोचने से कई बार स्थिति शांत हो जाती है।
अंत में याद रखें—अहिंसा सिर्फ़ विचार नहीं, बल्कि रोज़ की छोटी‑छोटी कार्रवाई है। जब हम सभी इसे अपनाएँगे तो समाज में कम हिंसा और ज्यादा सहयोग रहेगा। आपका एक छोटा कदम बड़े बदलाव की दिशा तय कर सकता है।
शहीद दिवस 30 जनवरी को मनाया जाता है, यह दिन महात्मा गांधी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद करने के लिए समर्पित है। महात्मा गांधी की हत्या 1948 में नई दिल्ली में नाथूराम गोडसे ने की थी। गांधी के अहिंसा के सिद्धांत ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी। उनके समर्थकों के अनुसार, गांधी को 'महात्मा' का उपाधि दक्षिण अफ्रीका में प्राप्त हुई।
आगे पढ़ें