क्या आपने कभी सोचा है कि 1962 का भारत‑चीन युद्ध क्यों हुआ? कई लोग इसे सिर्फ एक सीमा टकराव समझते हैं, पर असल में यह कई कारणों से जुड़ा था। इस लेख में हम बात करेंगे उस समय की पृष्ठभूमि, मुख्य घटनाओं और आज के लिए इसका मतलब क्या है। पढ़ते रहिए, जानकारी आसान होगी और समझ भी साफ़।
पहले सालों में भारत‑चीन रिश्ते ठीक नहीं थे। चीन ने तिब्बत पर दबाव बनाया और 1959 में दलाई लामा को बाहर निकाल दिया। इससे भारत के मन में डर बढ़ा, क्योंकि दोनों देशों की सीमा बहुत लंबी और पहाड़ी थी। भारत ने ‘फ़्रंटलाइन डिफ़ेंस’ नाम का एक प्लान बनायाऔर एरिया पॉलिसी लागू की, पर चीन ने इसको चुनौती दी। 1962‑05‑20 को चीनी सेना ने आक्रमण शुरू किया। पहला बड़ा झटका त्सांगो घाटी में आया, जहाँ भारतीय टुकड़े बहुत कम सिपाहियों के साथ लड़ रहे थे। फिर शिमला और नालंदा जैसे इलाकों में भी दंगें हुए।
चीन ने तेज़ गति से कई पहाड़ी चोटियों पर कब्ज़ा कर लिया, जबकि भारत का अधिकांश बल पीछे हटना पड़ा। इस दौरान कुछ सैनिकों ने बहादुरी दिखाते हुए अपनी जान गंवाई, लेकिन बड़े पैमाने पर भारतीय सेना को रणनीतिक रूप से पीछे हटना पड़ा। अंत में 15 नवंबर, दोनों पक्षों ने युद्ध बंद करने की घोषणा की और चीन ने कब्ज़ा किए हुए क्षेत्रों से वापस लौटने का वादा किया, मगर वास्तविक स्थिति कुछ साल तक बदलती रही।
युद्ध के बाद भारत ने अपने रक्षा नीति में बड़ा बदलाव किया। नई सेना योजना बनायी गई, हाई टेक्नोलॉजी वाले हथियार खरीदे गए और सीमा पर नज़र रखने के लिए एअर‑डिफेंस सिस्टम स्थापित किए गये। इस अनुभव से हमें सिखने को मिला कि पहाड़ी इलाकों की तैयारी, लॉजिस्टिक सपोर्ट और तेज़ सूचना प्रणाली बहुत ज़रूरी है।
आज भी भारत‑चीन सीमा पर तनाव रहता है, लेकिन 1962 के युद्ध ने दोनों देशों को यह दिखा दिया कि शांति के लिए संवाद और भरोसा जरूरी है। कई विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि उस समय बेहतर डिप्लोमैटिक प्रयास हुए होते तो लड़ाई टले जा सकती थी। इसलिए विदेश नीति में बातचीत को प्राथमिकता देना चाहिए, बजाय केवल शक्ति प्रदर्शन के।
सारांश में, 1962 युद्ध सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि हमें रणनीतिक सोच, सुरक्षा तैयारी और कूटनीति की अहमियत सिखाता है। यदि आप इस बारे में और गहराई से पढ़ना चाहते हैं तो हमारे पास कई लेख उपलब्ध हैं—सबसे अपडेटेड खबरें यहाँ मिलती हैं।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता मनिशंकर अय्यर ने 1962 के भारत-चीन युद्ध को 'कथित चीनी आक्रमण' के रूप में संदर्भित कर विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि भारत पूर्व चीनी प्रधानमंत्री चाउ एनलाइ के 1960 के प्रस्ताव को स्वीकार कर युद्ध टाल सकता था। कांग्रेस पार्टी ने उनके बयान से दूरी बनाते हुए अय्यर को माफी मांगने के लिए कहा है। अय्यर ने स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी विभिन्न पुस्तकों पर आधारित थी।
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