Netflix फिल्म ‘Sector 36’ की समीक्षा: विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल की बेहतरीन अदाकारी

Netflix फिल्म ‘Sector 36’ की समीक्षा: विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल की बेहतरीन अदाकारी सित॰, 13 2024

नेटफ्लिक्स पर फिल्म 'Sector 36': एक डरावना लेकिन सम्मोहक अनुभव

नेटफ्लिक्स की फिल्म 'Sector 36' 2006 के निठारी सीरियल हत्याकांड पर आधारित है। इस भयानक घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था और कई सवाल खड़े किए थे। फिल्म का निर्देशन आदित्य निम्बालकर ने किया है, जिन्होंने विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल की बेहतरीन प्रतिभाओं का भरपूर इस्तेमाल किया है। फिल्म एक क्राइम थ्रिलर है, जो आपको अंत तक बांधकर रखेगी।

विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल का बेहतरीन प्रदर्शन

विक्रांत मैसी ने 'प्रेम' नामक एक सीरियल किलर का किरदार निभाया है, जो पेडोफाइल और नरभक्षी भी है। उनका प्रदर्शन इतना गहरा और प्रभावशाली है कि दर्शकों को स्तब्ध कर देता है। दूसरी ओर, दीपक डोबरियाल ने एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई है, जो इस मामले की तह तक जाने के लिए अपनी पर्सनल जिंदगी में भी परिवर्तन लाता है। दोनो अभिनेताओं की अदाकारी फिल्म की जान है, और उनके संवाद और गतिविधियाँ आपको मजबूर कर देंगी कि आप कुछ समय के लिए अपनी सांसें रोक लें।

फिल्म की भयानक और गहन दृश्य

फिल्म में दर्शाए गए दृश्य बेहद भयानक और रक्तरंजित हैं, जो इसे एक कठिन लेकिन महत्वपूर्ण देखने का अनुभव बना देते हैं। निठारी हत्याकांड की गहनता और भयानकता को दर्शाने का प्रयास बहुत ही सजीवता से किया गया है। दर्शकों को सावधान रहना चाहिए कि यह फिल्म न केवल मनोरंजन के लिए है, बल्कि आपको समाज की काली सच्चाइयों से भी रूबरू कराती है।

समाज और व्यवस्था पर सवाल

फिल्म केवल अपराध और उसके अनावरण पर नहीं रुकती, बल्कि यह इस सवाल को भी उठाती है कि इस भयानक घटना के लिए कौन जिम्मेदार है। फिल्म को देखकर आप महसूस करेंगे कि यह हमारी प्रणाली की असफलताओं और समाज में व्याप्त बुराइयों को भी उजागर करती है। यह एक गंभीर सोचने और विश्लेषण करने वाली फिल्म है, जो आपको कई दिनों तक मंथन करने पर मजबूर कर देगी।

स्क्रीनप्ले और निर्देशन की प्रशंसा

बोधायन रॉयचौधरी द्वारा लिखित स्क्रीनप्ले ने फिल्म के गहरे और जटिल विषयों को बहुत ही प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया है। आदित्य निम्बालकर का निर्देशन सराहनीय है, जिन्होंने इस मुश्किल और संवेदनशील विषय को बड़े ही संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ पर्दे पर उतारा है। यह स्पष्ट है कि फिल्म को बनाने वाले हर शख्स की मेहनत और समर्पण ने इसे एक यादगार अनुभव बना दिया है।

निष्कर्ष

निष्कर्ष

समीक्षकों ने विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल की अदाकारी को बेहद सराहा है। खासकर विक्रांत के प्रदर्शन को सांस रोक देने वाला माना जा रहा है। दीपक का कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी का किरदार भी उतना ही प्रभावशाली है। फिल्म के दृश्य और गहराई दोनों ही इसे एक यादगार अनुभव बनाते हैं, और अगर आप क्राइम थ्रिलर के शौकीन हैं तो इसे जरूर देखना चाहिए।

इस फिल्म की रिलीज 13 सितंबर 2024 को नेटफ्लिक्स पर हुई थी, और तब से ही इसे दर्शकों से विशेष सराहना मिल रही है। अगर आप समाज की बुराइयों और पुलिस की कड़ी मेहनत को देखना चाहते हैं, तो 'Sector 36' आपके लिए एक जरूरी देखी जाने वाली फिल्म है।

8 टिप्पणि

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    Pritesh KUMAR Choudhury

    सितंबर 14, 2024 AT 22:23

    इस फिल्म ने मुझे बहुत गहरा असर दिया। विक्रांत का प्रदर्शन तो बस एकदम बेहतरीन था। ऐसा लगा जैसे वो असली व्यक्ति हैं।
    दीपक डोबरियाल का किरदार भी बहुत संवेदनशील और विश्वसनीय लगा।
    फिल्म का टोन बिल्कुल उचित था। कोई अतिरंजना नहीं, सिर्फ सच्चाई।
    निर्देशन और स्क्रीनप्ले दोनों की तारीफ करनी पड़ती है।
    मैंने कभी इतनी गहरी अपराध थ्रिलर नहीं देखी।
    एक ऐसी फिल्म जो आपको देखने के बाद खामोश कर दे।
    मुझे लगता है ये फिल्म भारतीय सिनेमा के लिए एक नया मानक स्थापित करती है।
    समाज की उन अंधेरी गलियों को उजागर करने के लिए टीम को बधाई।
    मैंने इसे देखकर अपने आसपास के लोगों के बारे में भी सोचना शुरू कर दिया।
    अगर आप बस मनोरंजन के लिए फिल्म देखते हैं, तो ये आपके लिए नहीं है।
    लेकिन अगर आप वास्तविकता को समझना चाहते हैं, तो ये जरूर देखें।

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    Mohit Sharda

    सितंबर 15, 2024 AT 04:33

    बहुत अच्छी फिल्म थी ❤️
    विक्रांत की अदाकारी ने मुझे रोमांचित कर दिया।
    दीपक डोबरियाल का किरदार भी बहुत शानदार था।
    इस तरह की फिल्में हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं।
    धन्यवाद नेटफ्लिक्स और टीम को।

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    Sanjay Bhandari

    सितंबर 15, 2024 AT 14:38

    yaar ye film toh bilkul jhatka de diya..
    vikrant ne toh apni aankhein bhi bhar di thi us role me..
    deepak ka police officer bhi kuch kam nahi..
    scene toh itne ghatiya the ki maine 2 baar pause kiya..
    par phir bhi dekhte raha..
    script toh solid thi..
    aur direction bhi bhai...kya baat hai..
    mera bhai bhi police hai usne bhi bola ye real hai..
    chalo toh dekh li..
    par abhi tak dimag ghoom raha hai..
    abhi tak soch raha hu kya kiya humne aise logon ko rokne ke liye..
    ye film sirf entertainment nahi hai..
    ye ek warning hai..
    aur haan..netflix ne ek aur hit de di 😎

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    Mersal Suresh

    सितंबर 16, 2024 AT 16:59

    यह फिल्म एक आधिकारिक रूप से अत्यंत उच्च स्तरीय निर्माण है जिसने भारतीय सिनेमा के नैतिक और विषयगत स्तर को एक नए ऊंचाई पर पहुंचा दिया है।
    विक्रांत मैसी का अभिनय अत्यंत विश्लेषणात्मक और अत्यधिक वैज्ञानिक रूप से विकसित चरित्र निर्माण का उदाहरण है, जिसमें व्यक्तित्व के विकृत पहलूओं को बिना किसी अतिरंजना के दर्शाया गया है।
    दीपक डोबरियाल के अभिनय ने एक सामाजिक नैतिकता का प्रतिनिधित्व किया है जो विधि और व्यवस्था के अंतर्गत अपने कर्तव्य का पालन करता है।
    इस फिल्म का निर्देशन आदित्य निम्बालकर द्वारा एक विशिष्ट शैली में किया गया है जो दर्शकों को एक दृष्टिकोण प्रदान करता है जो न केवल अपराध को दर्शाता है बल्कि उसके सामाजिक और संस्थागत कारणों को भी उजागर करता है।
    स्क्रीनप्ले का लेखन बोधायन रॉयचौधरी द्वारा अत्यंत संरचित और तर्कसंगत ढंग से किया गया है जिसमें एक दृढ़ गतिशीलता और नैतिक जिम्मेदारी का अनुभव होता है।
    इस फिल्म का विश्लेषण करने के लिए एक विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है क्योंकि यह एक बहुआयामी सामाजिक घटना का दर्शन है।
    इसे केवल एक व्यावसायिक फिल्म नहीं, बल्कि एक सामाजिक दस्तावेज के रूप में देखना चाहिए।
    इसकी रिलीज ने भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू किया है।
    हमें इस तरह की फिल्मों के लिए निर्माताओं को समर्थन देना चाहिए और इस तरह के विषयों को अपने स्तर पर लाने के लिए उत्साहित करना चाहिए।
    यह फिल्म एक शिक्षाप्रद और विश्लेषणात्मक अनुभव प्रदान करती है जिसे अध्ययन के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।

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    Pal Tourism

    सितंबर 18, 2024 AT 16:05

    dekho ye film toh sirf ek crime thriller nahi hai ye ek social commentary hai..
    aur haan vikrant ka performance? bhai..woh toh koi actor nahi..woh ek demon tha..
    deepak ka role bhi thik hai par vikrant ne toh sabko dhakka de diya..
    film ke baad maine apne neighbourhood ke 3 logon ki list banayi..
    kyunki ye film ne mujhe dikhaya ki kaise log apne aap ko innocent bana lete hain..
    aur haan netflix ka editing? bhai..perfect..
    camera angles? bhai..bilkul real..
    music? zero..
    kyunki music ki jarurat nahi thi..
    bas silence aur blood..
    aur ek baat..netflix ne kisi bhi political party ko touch nahi kiya..
    jo ki ek bada plus point hai..
    par agar ye film 2015 me aati toh kya hota?..
    maine dekha hai ki 2006 ke baad bhi kuch log wahi kaam kar rahe hain..
    aur haan..maine 5 logon ko report kar diya..
    film ne mujhe action lena sikha diya..
    thank you netflix..
    aur haan..vikrant ka face..abhi bhi meri aankhon ke saamne hai..
    aur maine apne bhai ko bhi bheja..
    woh bhi chill gaya..
    ab toh maine apna phone bhi delete kar diya..
    kyunki ye film ne mujhe dikhaya ki kaise hum sab kuch dekh rahe hain par kuch nahi kar rahe..
    ye film ek mirror hai..
    aur maine apna reflection dekha..
    ab kya karein?..
    maine apne gaon ke pradhan ko bhi call kiya..
    woh bhi kuch nahi karega..
    par maine kuch kiya..
    aur haan..film ke baad maine ek book bhi likhna shuru kar diya..
    uska naam hai: 'Sector 36: The Silence We Ignored'

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    Sunny Menia

    सितंबर 20, 2024 AT 02:05

    मैंने भी यह फिल्म देखी है और मुझे बहुत प्रभावित किया।
    विक्रांत का किरदार इतना डरावना था कि मैंने अपने बच्चे को फिल्म देखने से रोक दिया।
    दीपक डोबरियाल का अभिनय बहुत संतुलित था।
    मुझे लगता है कि यह फिल्म हमें याद दिलाती है कि अच्छे लोग भी अपने आसपास की बुराइयों को देख सकते हैं और उनका सामना कर सकते हैं।
    मैं इस फिल्म को अपने दोस्तों के साथ देखने की सलाह दूंगा।
    यह फिल्म एक बड़ी जिम्मेदारी के साथ बनाई गई है।

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    Abinesh Ak

    सितंबर 20, 2024 AT 23:12

    अरे यार, ये फिल्म तो बस एक 'socially responsible' नाटक है जिसे नेटफ्लिक्स ने बनाया है ताकि उनके लोग अपने अल्गोरिदम को बढ़ा सकें।
    विक्रांत का अभिनय? ओह बिल्कुल, जैसे कोई एक्टिंग कोर्स का फाइनल प्रोजेक्ट हो।
    दीपक डोबरियाल? वो तो अपने आप में एक बॉर्डरलाइन पुलिस ऑफिसर हैं, बस एक लोगो जिसके बारे में कोई नहीं जानता।
    निर्देशन? बहुत संवेदनशील, जैसे कोई टीवी डॉक्यूमेंट्री जिसमें बिना किसी बाजारी ट्रेंड के एक दर्द भरा वीडियो डाल दिया गया हो।
    स्क्रीनप्ले? बहुत 'deep', जैसे कोई एक्सपर्ट ने रिसर्च पेपर लिखकर उसे फिल्म में बदल दिया हो।
    मुझे लगता है ये सब एक 'woke' ब्रांडिंग एक्सरसाइज है।
    क्या आपको लगता है कि अगर ये फिल्म 2010 में आती तो कोई उसे देखता? नहीं।
    अब आती है और सब बोलते हैं 'इतनी गहरी फिल्म!'
    मैंने इसे देखा और अपने फेसबुक पर लिख दिया 'इसे देखो' और फिर भूल गया।
    ये फिल्म असली अपराध को नहीं दर्शाती, बल्कि उसके बारे में बात करने का मौका देती है।
    अगर आप वास्तव में जानना चाहते हैं कि निठारी क्या हुआ, तो विकिपीडिया पर जाएं।
    इस फिल्म का मकसद जागरूकता नहीं, बल्कि व्यूज है।
    और वो तो बहुत अच्छा चल रहा है।

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    Ron DeRegules

    सितंबर 21, 2024 AT 01:22

    मैंने इस फिल्म को दो बार देखा है और दूसरी बार देखते समय मैंने अपने नोट्स बनाए थे क्योंकि यह फिल्म एक अत्यंत जटिल सामाजिक और मनोवैज्ञानिक संरचना प्रस्तुत करती है जिसमें अपराध के व्यक्तिगत और सामूहिक कारणों का एक गहन विश्लेषण किया गया है।
    विक्रांत मैसी के अभिनय में एक ऐसी गहराई है जो बहुत कम अभिनेताओं को प्राप्त होती है और यह उनके चरित्र के अंतर्गत एक अत्यंत विकृत और अस्तित्वहीन मनोवैज्ञानिक स्थिति को दर्शाती है जो बाल अपराध के साथ जुड़ी है और जिसके लिए व्यवस्था का असफलता का दोष दिया जा सकता है।
    दीपक डोबरियाल का किरदार एक ऐसे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जो नियमों के अंतर्गत काम करता है लेकिन उसके भीतर एक अस्थिर भावनात्मक संतुलन है जो उसे अपने व्यक्तिगत जीवन को बलिदान करने के लिए मजबूर करता है और यह एक बहुत ही दुर्लभ चरित्र है जिसे भारतीय सिनेमा में कम ही देखा जाता है।
    फिल्म के दृश्य बहुत संवेदनशील रूप से बनाए गए हैं और उनमें रक्त का प्रयोग केवल शौक के लिए नहीं बल्कि एक ऐसे संकेत के रूप में किया गया है जो निर्माताओं द्वारा अपराध के भावनात्मक बोझ को दर्शाने के लिए किया गया है।
    निर्देशन आदित्य निम्बालकर ने एक ऐसी शैली अपनाई है जो दर्शक को एक निष्क्रिय दर्शक नहीं बल्कि एक सक्रिय विश्लेषक बना देती है जो फिल्म के बाद भी उसके विषयों पर विचार करता रहता है।
    स्क्रीनप्ले में एक बहुत ही उच्च स्तर की भाषा और संरचना है जिसमें प्रत्येक डायलॉग एक अलग स्तर पर काम करता है और यह एक अत्यंत दुर्लभ गुण है।
    मैंने इस फिल्म के बारे में अपने विश्वविद्यालय के एक सेमिनार में भी चर्चा की थी और वहां के अध्यापकों ने इसे एक शिक्षाप्रद सामग्री के रूप में अपनाने की सलाह दी थी।
    यह फिल्म केवल एक फिल्म नहीं है बल्कि एक सामाजिक दस्तावेज है जो भारतीय समाज की अंधेरी ओर को उजागर करता है और इसके लिए निर्माताओं को बधाई देनी चाहिए।
    मैंने इस फिल्म को अपने छात्रों को भी दिखाया है और उन्होंने इसे एक बहुत ही शक्तिशाली अनुभव के रूप में वर्णित किया है।
    मुझे लगता है कि यह फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर है और इसके बाद और अधिक ऐसी फिल्में बननी चाहिए जो सामाजिक सच्चाई को उजागर करें।
    मैंने इस फिल्म को देखकर अपने शहर के स्कूलों में एक वार्तालाप शुरू किया है जिसमें बच्चों को अपराध और सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में बताया जा रहा है।
    यह फिल्म एक शिक्षा है और यह अपने दर्शकों को जागरूक करने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है।
    मैं इस फिल्म को एक अनुपम उपलब्धि मानता हूं और इसके लिए टीम को बधाई देता हूं।

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