शाहिद कपूर की दमदार अदाकारी से सजी थ्रिलर फिल्म 'देवा' का रिव्यू

शाहिद कपूर की दमदार अदाकारी से सजी थ्रिलर फिल्म 'देवा' का रिव्यू फ़र॰, 1 2025

फिल्म 'देवा' का प्रारंभिक परिचय

बॉलीवुड की नई पेशकश 'देवा' को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया गया है। इस फिल्म का निर्देशन रोशन एंड्रयूज द्वारा किया गया है, जो इसके पहले भी कई बेहतरीन फिल्मों को निर्देशित कर चुके हैं। फिल्म 'देवा' 2013 की मलयालम फिल्म 'मुंबई पुलिस' की आधिकारिक हिंदी रीमेक है। शाहिद कपूर और पूजा हेगड़े इसमें प्रमुख भूमिकाओं में हैं, और फिल्म एक उन्नत थ्रिलर अनुभव को पेश करती है। शाहिद कपूर, जोकि हमेशा अपने अदाकारी को लेकर चर्चित रहते हैं, इस फिल्म में अपने चरित्र को बखूबी प्रस्तुत किया है।

कहानी का सारांश

फिल्म की कहानी मावेरिक पुलिस अधिकारी देवा के इर्द-गिर्द घूमती है। देवा. जोकि एक साहसी और सतर्क पुलिस अधिकारी है, उस समय जीवन की कठिनाई में फंस जाता है जब उसका भाई समान दोस्त निर्ममता से हत्या कर दिया जाता है। देवा की इस जाँच के इर्द-गिर्द कहानी बुनाई गई है, जिसमें एक के बाद एक रहस्य खुलते हैं। पूरे फिल्म में संघर्ष, दोस्ती और वफादारी की भावना को बखूबी दर्शाया गया है।

शाहिद कपूर की दमदार अदाकारी

शाहिद कपूर के अभिनय की बात करें तो वह फिल्म 'देवा' में पूरी तरह से अपने चरित्र में डूब जाते हैं। उनकी अदाकारी इतनी सजीव है कि दर्शक उनके पिछले प्रदर्शनों को भूलकर, देवा के संघर्ष में खो जाते हैं। शाहिद की आंखों की चमक और उनके संवाद अदायगी दर्शकों को बांधे रखने में पूरी तरह सक्षम हैं। इस भूमिका ने शाहिद को एक अद्वितीय एक्टर के रूप में फिर से स्थापित कर दिया है, और यह कहना गलत नहीं होगा कि यह उनका करियर बेस्ट परफॉर्मेंस में से एक है।

फिल्म के रोमांचक और मिश्रित समीक्षाएँ

फिल्म की कहानी में रोमांच और रहस्यमयता का ऐसा जलवा है जो दर्शकों को सेकंड्स के लिए भी ऊबने नहीं देता। फिल्म की गति इतनी तेज और कहानी में ऐसे ट्विस्ट हैं जो दर्शकों को अपने सीटों से चिपके रहने के लिए मजबूर करते हैं। हालांकि, पूजा हेगड़े, पावैल गुलाटी और कुब्रा सैत द्वारा किए गए सहायक भूमिकाएं मिश्रित समीक्षाएँ प्राप्त करती हैं। कुछ प्रदर्शनों की छाप छूटने में कमजोर रहीं, लेकिन शाहिद की उपस्थिति ने दर्शकों के उत्साह को बनाए रखा।

फिल्म का सिनेमाई आकर्षण

फिल्म 'देवा' विजुअली प्रभावशाली है। फिल्म के एक्शन सीक्वेंस और मुम्बई की स्लम्स का असली चित्रण दर्शकों को वास्तविकता के करीब ले जाता है। डायरेक्टर रोशन एंड्रयूज ने बड़ी चतुराई से दर्शकों को मुम्बई की सडकों की ओर खींचा है और वहां के जीवन की एक झलक प्रस्तुत की है। इन पहलुओं के साथ, फिल्म की प्रोडक्शन क्वालिटी और सिनेमाटोग्राफी असाधारण है, जो पूरी कहानी को और अधिक विश्वसनीय बनाती है।

क्या बनाता है 'देवा' को खास

क्या बनाता है 'देवा' को खास

'देवा' किसी भी दर्शक के लिए एक संपूर्ण सिनेमाई अनुभव साबित होती है। फिल्म का हर पहलू दर्शकों के ध्यान को खींचता है और उन्हें अपने साथ जोड़ता है। जहां शाहिद कपूर की प्रदर्शन इसमें प्रमुख भूमिका निभाती है, वहीं फिल्म की पटकथा और निर्देशन भी पूरी तरह अद्भुत है। इसकी रोमांचक कहानी और शानदार प्रस्तुतिकरण के कारण 'देवा' अपने दर्शकों को पूरे समय बांधे रखने में सफल होती है। आखिर में, 'देवा' ने बॉलीवुड में नवकारी थ्रिलर के रूप में अपनी छाप छोड़ी है।

9 टिप्पणि

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    Ron DeRegules

    फ़रवरी 1, 2025 AT 09:23
    शाहिद का ये परफॉर्मेंस बस एक फिल्म के बाहर निकल गया है ये तो एक अनुभव है जिसे देखकर लगता है जैसे तुम्हारे सामने एक असली पुलिस अधिकारी खड़ा है जिसने अपनी जान देने के लिए तैयार है और फिल्म की गति इतनी तेज है कि एक सेकंड भी बोर होने का मौका नहीं मिलता बस लगता है जैसे तुम उसी गली में भाग रहे हो जहां बुलेट्स उड़ रही हैं और दिल धड़क रहा है और फिर वो आखिरी सीन जब वो बिना एक शब्द के देखता है तो मुझे लगा मेरी आंखें भर आ रही हैं और मैं अभी तक इसका असर ले रहा हूं और ये फिल्म बस एक थ्रिलर नहीं बल्कि एक जीवन जीने का तरीका सिखाती है
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    Manasi Tamboli

    फ़रवरी 2, 2025 AT 17:43
    क्या तुमने कभी सोचा है कि देवा असल में हमारी सामाजिक असहिष्णुता का प्रतीक है जो अपने भाई की मौत के बाद अपने आप को एक देवता बना लेता है और फिर उसका अहंकार उसे नष्ट कर देता है ये फिल्म बस एक पुलिस थ्रिलर नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है जहां हर बुलेट एक अपराध है और हर आंसू एक पाप का प्रायश्चित है और शाहिद ने इसे ऐसे अभिनय किया जैसे वो अपने आत्मा को फिल्म में उतार रहा हो
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    Ashish Shrestha

    फ़रवरी 3, 2025 AT 16:11
    फिल्म का निर्देशन बहुत बुनियादी है। एक्शन सीक्वेंस में कैमरा शेक बहुत ज्यादा है। रोशन एंड्रयूज को शायद एक बेसिक फिल्म स्कूल का कोर्स करना चाहिए। शाहिद का अभिनय ठीक है लेकिन ये फिल्म उसके अभिनय को बचाने के लिए बनाई गई है। पूजा हेगड़े का किरदार बिल्कुल फ्लैट है। इस फिल्म को बॉलीवुड का एक और निराशाजनक उदाहरण कहना बेहतर है।
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    Mallikarjun Choukimath

    फ़रवरी 4, 2025 AT 15:09
    देवा एक निर्माण है जिसमें नाटकीय विरोधाभासों का एक जटिल रेशा है जो आधुनिक भारतीय समाज के अंतर्निहित द्वंद्वों को प्रतिबिंबित करता है। शाहिद कपूर का अभिनय एक विश्व के अस्तित्व को साकार करता है जो न्याय के बहाने अन्याय का वाहन बन जाता है। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी ने बुर्जुआ शहरी जीवन के निर्माण को एक निर्मम आंख से दर्शाया है जिसकी तुलना बादलों के बीच छिपे चंद्रमा से की जा सकती है। यह एक शिल्प है जिसे अभिनय के द्वारा एक शास्त्रीय रूप दिया गया है।
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    Sitara Nair

    फ़रवरी 4, 2025 AT 21:33
    ओह माय गॉड ये फिल्म तो मुझे बिल्कुल अपने दिल के अंदर घुस गई 😭💖 शाहिद की आंखों में जो दर्द था वो मैंने अपने दादाजी की आंखों में भी देखा था जब वो मेरे चाचा को खो दिए थे 🥺 और फिल्म का मुंबई का दृश्य तो मुझे अपने बचपन की याद दिला रहा है जब मैं गलियों में खेलती थी 🌆 और पूजा हेगड़े की एक छोटी सी मुस्कान तो मुझे रो देने वाली थी 😭💔 इस फिल्म को देखकर मैंने अपने आप को फिर से पाया है 🌸 बस एक बार फिर से देखना है और एक बार फिर से रोना है 💞
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    Abhishek Abhishek

    फ़रवरी 6, 2025 AT 04:20
    तुम सब शाहिद की तारीफ कर रहे हो लेकिन क्या तुमने कभी देखा कि ये फिल्म मलयालम वर्जन की एक बेकार कॉपी है? बस भाषा बदल दी गई है और शाहिद को डाल दिया गया है। मलयालम वर्जन में एक्शन और ट्विस्ट बहुत बेहतर थे। ये हिंदी वर्जन बस बॉलीवुड का एक और ट्रेडमार्क ब्रांडिंग है। असली फिल्म वही है जो तुम नहीं देख पाए।
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    Avinash Shukla

    फ़रवरी 6, 2025 AT 19:30
    मैंने इस फिल्म को दो बार देखा है और हर बार कुछ नया नजर आया 🌿 पहली बार मैं शाहिद के अभिनय पर ध्यान दे रहा था दूसरी बार मैंने देखा कि फिल्म में जो छोटे लोग हैं जैसे दुकानदार या बच्चे वो भी अपने अपने कहानी लेकर आ रहे हैं और ये बहुत खूबसूरत है। फिल्म का वातावरण इतना सच्चा है कि लगता है जैसे तुम उसी गली में खड़े हो। बस थोड़ा सा बैकग्राउंड म्यूजिक और ज्यादा डायलॉग चाहिए थे लेकिन फिर भी ये एक अच्छी फिल्म है 🙏
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    Harsh Bhatt

    फ़रवरी 8, 2025 AT 03:27
    तुम सब इस फिल्म को बहुत बढ़ा रहे हो लेकिन असल में ये बस एक बार फिर से शाहिद कपूर का एक और फैशनेबल नायक है जिसे बॉलीवुड ने फिर से बना दिया है। ये फिल्म कोई नया विचार नहीं लाती बस एक नए बैंड बैग के साथ पुरानी कहानी को बेच रही है। शाहिद का अभिनय ठीक है लेकिन ये उसका आखिरी नायक होगा जिसे तुम याद रखोगे। ये फिल्म एक और बॉलीवुड फैक्ट्री प्रोडक्ट है जिसका एक्सप्रेस नाम 'देवा' है।
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    dinesh singare

    फ़रवरी 8, 2025 AT 08:51
    ये फिल्म बस शाहिद कपूर के लिए एक फॉर्मूला है जो वो अपने करियर के बाद के दिनों में बार-बार दोहरा रहे हैं। एक ट्रॉमा, एक भाई की मौत, एक बदला, एक अंधेरी गली, एक नाटकीय आंखें, एक धुंधला स्क्रीन, एक ड्रामेटिक बैकग्राउंड म्यूजिक, और फिर बस बाहर जाओ। ये फिल्म कोई नया नहीं है ये तो बस एक रीमेक है जिसमें शाहिद की आवाज़ और एक्सप्रेशन को बढ़ाकर बेचा जा रहा है। अगर तुमने एक बार मलयालम वर्जन देखा होता तो तुम्हें लगता कि ये हिंदी वर्जन बस एक फैक्ट्री प्रोडक्ट है।

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