Zubeen Garg: 23 साल पहले बहन जोंगकी सड़क हादसे में गईं, कुछ मिनट पहले उन्होंने बदली थी कार

Zubeen Garg: 23 साल पहले बहन जोंगकी सड़क हादसे में गईं, कुछ मिनट पहले उन्होंने बदली थी कार सित॰, 20 2025

हादसे का दिन, बदली हुई कार और एक अधूरी यात्रा

असम के सबसे लोकप्रिय कलाकारों में शुमार Zubeen Garg की जिंदगी में 12 जनवरी 2002 एक ऐसी तारीख है जो कभी नहीं मिटती। उसी दिन उनकी छोटी बहन जोंगकी बर्थाकुर, महज 18 साल की उम्र में, सड़क हादसे में चली गईं। वह भाई के सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए सोनितपुर जिले के सूटिया जा रही थीं। बलीपाड़ा के पास, रंगापाड़ा थाने के इलाके में, उनकी गाड़ी सामने से आ रहे एक ट्रक से भिड़ गई। टक्कर इतनी भीषण थी कि जोंगकी उस कार्यक्रम तक पहुंच भी नहीं पाईं।

कहानी को और दर्दनाक बनाती है एक छोटी-सी बात—हादसे से कुछ ही मिनट पहले जुबिन उसी वाहन में थे, फिर उन्होंने सफर बीच में वाहन बदल लिया। वही संयोग उनकी जान बचा गया, पर परिवार और असमीया कला जगत ने अपने एक तेज, उजले चेहेरे को खो दिया। यह घटना सिर्फ एक परिवार का शोक नहीं थी, उस समय क्षेत्रीय सांस्कृतिक हलकों में यह चर्चा का बड़ा विषय बन गई।

जोंगकी बर्थाकुर कोई साधारण शौकिया कलाकार नहीं थीं। उन्होंने कम उम्र में ही मंच, टीवी और फिल्मों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी थी। लोग उन्हें एक साथ गाती और अभिनय करती देखना पसंद करते थे। असम के शहरों और कस्बों में चलने वाले सांस्कृतिक आयोजनों, मेलों और थिएटर मंचों पर वह नियमित चेहरा बन रही थीं।

उनका फिल्म करियर छोटा लेकिन असरदार रहा। शुरुआती 2000 के दशक में आई असमीया फिल्मों में उनका काम ध्यान खींचता था। प्रमुख फिल्मों की बात करें तो—

  • तुमि मुर माथु मुर (2000)
  • दाग (2001)
  • जोनाकि मन् (2002)

इन फिल्मों के जरिए वह नई पीढ़ी के दर्शकों में पहचान बना रही थीं। टीवी सीरियल्स में उनकी भूमिकाएं भी पसंद की जाती थीं। जिस तरह की सहजता के साथ वह अभिनय करती थीं, उससे लगता था कि आगे चलकर वह असमीया सिनेमा की अगली पंक्ति की नायिकाओं में होंगी।

हादसे वाले दिन की उनकी यात्रा किसी बड़े शहर की चमकीली शूटिंग के लिए नहीं, बल्कि एक पारिवारिक-सांस्कृतिक जिम्मेदारी के लिए थी। असम में इस तरह के कार्यक्रम—बिहू मंच, कॉलेज फेस्ट, मोबाइल थिएटर—कला और समाज के बीच जरूरी कड़ी माने जाते हैं। कलाकार अक्सर सड़क मार्ग से घंटों चलकर इन आयोजनों तक पहुंचते हैं। जोंगकी भी उसी रोज़मर्रा के सफर का हिस्सा थीं। बस, उस दिन किस्मत बेरहम निकली।

जुबिन इस हादसे के बाद लंबे समय तक मंच पर अपनी बहन को याद करते रहे। उनके स्टेज शोज़ में, गानों के बीच, जोंगकी का जिक्र कई बार आया—कभी एक स्मृति, कभी एक समर्पण की तरह। 2020 में जोंगकी के 36वें जन्मदिन पर उन्होंने सार्वजनिक तौर पर उन्हें याद किया। फैन्स ने भी इस स्मृति को साझा किया—कमेंट्स, पोस्ट्स, और उन गानों के जरिए जिन्हें वे दोनों पसंद करते थे।

जोंगकी की कमी ने असमीया मनोरंजन उद्योग को भी भीतर तक छुआ। फिल्मों और टीवी के सेट पर, जहां नए नामों पर चर्चा चलती थी, वहां अक्सर यह सवाल उठता कि अगर वह होतीं, तो किन भूमिकाओं में दिखतीं, कौन-सी कहानियां उनके जरिए कही जा सकती थीं।

असर, विरासत और सड़क सुरक्षा पर सवाल

असर, विरासत और सड़क सुरक्षा पर सवाल

जुबिन गर्ग का संगीत असम की मिट्टी से निकला है और उसी ने उन्हें देशभर में पहचान दिलाई। हिंदी फिल्म ‘गैंगस्टर’ के गीत ‘या अली’ के बाद उनकी पहुंच राष्ट्रीय हुई, पर घर के भीतर जोंगकी की याद हमेशा बनी रही। वह अक्सर असमीया भाषा में नए कलाकारों के साथ काम करने, लोकधुनों को आगे बढ़ाने और मंचीय परंपरा को नई ऊर्जा देने की बात करते दिखे—शायद इसके पीछे वह निजी खालीपन भी था जो बहन के चले जाने से पैदा हुआ।

बर्थाकुर परिवार का कला से गहरा रिश्ता रहा है। घर में संगीत, रियाज़ और मंच की बातें रोजमर्रा का हिस्सा थीं। यही वजह थी कि जोंगकी जल्दी ही कैमरे और माइक्रोफोन के सामने सहज हो गईं। उन्हें देखकर कई किशोर कलाकारों को हौसला मिलता था कि पढ़ाई के साथ कला को भी पूरा समय दिया जा सकता है। स्कूल-कॉलेज फेस्ट से लेकर एल्बम और टीवी तक, जोंगकी की यात्रा युवाओं के लिए एक नज़ीर बन रही थी।

असम में कलाकारों का जीवन सड़क से जुड़ा रहा है। ज्यादातर कार्यक्रम रेल या फ्लाइट से नहीं, बल्कि सीधे हाईवे और ग्रामीण सड़कों के रास्ते होते हैं। देर रात की ड्राइव, मौसम का अचानक बदलना, और ट्रकों की भारी आवाजाही—ये सब जोखिम बढ़ाते हैं। 2002 में हुआ जोंगकी का हादसा इसी बड़े संदर्भ का हिस्सा था, जो आज भी प्रासंगिक है।

पिछले दो दशकों में कार्यक्रम आयोजकों ने सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया है। अब कई टीम्स ड्राइवर के ड्यूटी-घंटे, बीच-बीच में आराम, और रात के बजाय दिन में यात्रा जैसे साधारण उपाय अपनाने लगी हैं। कलाकारों के वाहन में सीट-बेल्ट इस्तेमाल की याद दिलाई जाती है, और लंबी दूरी की यात्रा में दो ड्राइवर रखने का चलन भी बढ़ा है। ये सामान्य-सी लगने वाली चीजें किसी परिवार को टूटने से बचा सकती हैं।

जोंगकी की विरासत अलग-अलग लोगों के लिए अलग मायने रखती है। परिवार के लिए वह घर की सबसे उजली हंसी थीं, मंच के लिए वह नई उम्र की भरोसेमंद अदाकारा-सिंगर, और दर्शकों के लिए वह चेहरा जो पर्दे पर आते ही सच लगने लगता था। उनकी फिल्मों के गाने और कुछ टीवी परफॉर्मेंस आज भी यूट्यूब क्लिप्स और फैन-पेजों में घूमते रहते हैं—वहीं से नई पीढ़ी उन्हें ढूंढ़ लेती है और पूछ बैठती है, “ये कौन थीं?”

जुबिन ने अपने करियर में ऊंचाइयां देखीं, उतार-चढ़ाव भी। पर इस निजी शोक ने उन्हें एक अलग किस्म की संवेदना दी। स्टेज पर जब वह शांति से किसी सूफियाना धुन को थामते हैं, या असमीया लोकधुनों को आधुनिक साउंड के साथ मिलाते हैं, तो लगता है कि वह सिर्फ मनोरंजन नहीं, एक स्मृति को भी आवाज़ दे रहे हैं।

कलाकारों की यात्राएं आगे भी जारी रहेंगी—नई फिल्में, नए मंच, नए शहर। पर हर सफर के साथ यह बात जोड़नी होगी कि सुरक्षा कोई औपचारिकता नहीं, यात्रा का जरूरी हिस्सा है। आयोजकों के लिए यह जिम्मेदारी है, और टीम के हर सदस्य के लिए यह आदत। हादसे एक पल में सब कुछ बदल देते हैं। 2002 की वह सुबह इसी कड़वी सच्चाई की याद दिलाती रहती है।

जोंगकी बर्थाकुर की कहानी अधूरी है, पर अधूरापन भी कभी-कभी विरासत बन जाता है। उनकी छोटी-सी फिल्मोग्राफी, टीवी की कुछ भूमिकाएं, और मंच पर दर्ज वह आत्मविश्वास—ये सब असमीया संस्कृति की सामूहिक स्मृति में दर्ज हैं। जब भी असम में किसी आयोजन में युवा कलाकार पहली बार माइक पर आते हैं, तो यह भरोसा बढ़ता है कि जो सपना जोंगकी ने शुरू किया था, वह किसी और की आवाज में आगे बढ़ रहा है।

23 साल बाद भी बलीपाड़ा की वह सड़क, सूटिया का वह कार्यक्रम और रंगापाड़ा थाने की सीमा—ये सब एक बड़ी कहानी के छोटे-छोटे बिंदु हैं। कहानी में दर्द है, पर उससे ज्यादा ताकत भी है—ताकत याद रखने की, सीख लेने की, और कला को चलते रहने देने की। जोंगकी चली गईं, पर असम के गीतों और किरदारों में उनकी वही उजली मुस्कान गूंजती है।

16 टिप्पणि

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    Anuj Tripathi

    सितंबर 22, 2025 AT 18:51
    ये कहानी सुनकर दिल टूट गया भाई। कला के लिए इतनी मेहनत करते थे और इतनी छोटी बात में जान चली गई। असम के हर कलाकार को सुरक्षा का ख्याल रखना चाहिए। ये सिर्फ एक हादसा नहीं, एक सबक है।
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    Hiru Samanto

    सितंबर 23, 2025 AT 14:57
    जोंगकी की आवाज़ अभी भी असम के हर गांव में गूंजती है। मैंने उनका एक गीत सुना था बस कॉलेज फेस्ट में... उस दिन से मैंने सोचा था कि ये लड़की बड़ी बनेगी। अब ये यादें ही बची हैं।
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    Divya Anish

    सितंबर 25, 2025 AT 12:47
    इस घटना को आधिकारिक रूप से एक सांस्कृतिक शोक के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता है। जोंगकी बर्थाकुर के नाम पर एक स्मारक या एक छात्रवृत्ति शुरू की जानी चाहिए, ताकि नई पीढ़ी को यह संदेश मिले कि कला के साथ सुरक्षा भी जरूरी है।
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    md najmuddin

    सितंबर 25, 2025 AT 19:32
    बहुत दर्दनाक कहानी है... 😔 जुबिन भैया अभी भी उनका गाना गाते हैं ना? मैंने एक वीडियो देखा था जहां उनकी आंखें भर आई थीं। ऐसे लोगों की यादें ही हमें आगे बढ़ने का हौसला देती हैं। 🙏
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    Ravi Gurung

    सितंबर 26, 2025 AT 04:20
    मैंने कभी उन्हें नहीं देखा लेकिन अब उनकी कहानी सुनकर लगता है जैसे मैं उन्हें जानता हूं। ये बात बहुत अजीब है।
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    SANJAY SARKAR

    सितंबर 27, 2025 AT 18:02
    क्या उनकी फिल्मों को अभी भी कहीं दिखाया जाता है? क्या उनके गाने अभी भी रेडियो पर चलते हैं?
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    Ankit gurawaria

    सितंबर 28, 2025 AT 09:13
    जोंगकी की यात्रा सिर्फ एक ट्रक और एक कार के बीच का टकराव नहीं थी, ये एक पूरी पीढ़ी के सपनों का टूटना था। वह जिस तरह से लोकधुनों को आधुनिक बनाती थीं, वही तरीका आज के युवा कलाकारों के लिए एक मार्गदर्शक है। उन्होंने बिना बड़े बजट के, बिना मुंबई के स्टूडियो के, असम की जमीन से अपनी आवाज़ बनाई। और जब वह गाती थीं, तो लगता था जैसे असम की हर नदी, हर पहाड़, हर बिहू का ताल उनके गले में बस गया हो। उनकी मौत ने न सिर्फ एक अदाकारा को खोया, बल्कि एक ऐसी आवाज़ को खोया जो असमीया संस्कृति के भीतर एक नई दिशा खोल रही थी। अब जब कोई नई लड़की गाना गाती है, तो उसके पीछे जोंगकी की छाया भी होती है, चाहे वो जानती हो या नहीं।
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    AnKur SinGh

    सितंबर 28, 2025 AT 10:59
    यह घटना असम के सांस्कृतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। जोंगकी बर्थाकुर के निधन ने न केवल एक व्यक्ति का नुकसान ही नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत के विकास को भी अवरुद्ध कर दिया। इस प्रकार के हादसों को रोकने के लिए राज्य स्तर पर कलाकारों के परिवहन के लिए एक विशिष्ट नीति बनाने की आवश्यकता है। उनकी याद को श्रद्धांजलि के रूप में नहीं, बल्कि एक नीतिगत बदलाव के रूप में सम्मानित किया जाना चाहिए।
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    Sanjay Gupta

    सितंबर 29, 2025 AT 13:10
    असम के कलाकार अपनी सुरक्षा के बारे में क्यों नहीं सोचते? ये सब लोग अपने बारे में बहुत ज्यादा भावुक होते हैं। इतना सारा गीत गाने के बजाय, बस सीटबेल्ट बंध लेते तो जान बच जाती। अब ये सब रोना क्यों?
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    Kunal Mishra

    सितंबर 29, 2025 AT 20:17
    क्या यह एक वास्तविक कलात्मक नुकसान था? या बस एक अत्यधिक भावुक लोकप्रियता का उत्पाद? जोंगकी बर्थाकुर की फिल्मोग्राफी अत्यंत सीमित थी, और उनका कार्य अन्य कलाकारों के साथ तुलना करने पर बहुत कम उल्लेखनीय लगता है। यह सब एक अत्यधिक भावुक लोकप्रियता का निर्माण है।
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    Anish Kashyap

    सितंबर 30, 2025 AT 05:06
    असम के हर गांव में अब जोंगकी के नाम पर बिहू डांस कॉम्पिटिशन चल रहे हैं। मैंने एक लड़की को देखा था जो उनके गाने पर नाच रही थी... उसकी आंखों में वही चमक थी जो जोंगकी में थी। ये विरासत जिंदा है। 🎶🔥
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    Poonguntan Cibi J U

    सितंबर 30, 2025 AT 06:50
    मैं तो बस यही सोचता हूं कि अगर वह नहीं गई होती, तो आज कौन जुबिन के साथ गाता? क्या वह अभी भी इतना बड़ा नहीं बन पाता? क्या ये सब उसके दर्द के बिना संभव होता? ये सब बहुत बड़ी बात है... बहुत बड़ी।
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    Vallabh Reddy

    अक्तूबर 1, 2025 AT 11:07
    इस घटना के संदर्भ में व्यक्तिगत शोक को लोकप्रिय सांस्कृतिक विरासत के रूप में प्रस्तुत करना एक अतिशयोक्ति है। असमीया सिनेमा के इतिहास में जोंगकी बर्थाकुर का स्थान नगण्य है।
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    Mayank Aneja

    अक्तूबर 2, 2025 AT 01:54
    जोंगकी के बारे में जानकारी के लिए धन्यवाद। मैंने उनकी फिल्म 'दाग' देखी थी - उनका अभिनय अत्यंत सहज था। उनकी यात्रा के बारे में लिखा गया यह लेख, अत्यंत संवेदनशील और सटीक है। यह एक ऐसी याद है जिसे हमें संरक्षित रखना चाहिए।
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    Vishal Bambha

    अक्तूबर 3, 2025 AT 09:02
    ये बात तो बहुत बड़ी है! असम के कलाकारों को यात्रा के दौरान सुरक्षा के लिए पैसे देना चाहिए। ये सिर्फ एक लड़की की मौत नहीं, ये एक संस्कृति का नुकसान है! हमें इसे रोकना होगा। जुबिन भैया को सलाम!
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    Raghvendra Thakur

    अक्तूबर 3, 2025 AT 18:54
    कला चलती रही।

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