जब भी सिख इतिहास की बात आती है तो कई लोग "अलगाववाद" शब्द सुनते हैं। लेकिन इसका मतलब सिर्फ़ हिंसा नहीं, बल्कि एक राजनीतिक आंदोलन था जो 1980 के दशक में उभरा। इस लेख में हम समझेंगे कि ये नेता कौन थे, क्यों उभरे और आज उनका क्या असर है।
सिख अल्पसंख्यक वाले पंजाब में 1970 के अंत में आर्थिक और सामाजिक असमानताएं बढ़ीं। किसान संकट, भाषाई अधिकारों की मांग और धर्मीय पहचान का सवाल उठने लगा। इस माहौल में कुछ नेता जड़ता तोड़कर स्वतंत्र राज्य "खालिस्तान" की बात करने लगे। सबसे प्रसिद्ध नाम है भगत सिंह बत्रा, जो 1980 के शुरुआती सालों में कूटनीति से काम नहीं कर पा रहे थे और हिंसक मार्ग अपनाया।
उनके बाद कई समूह आए जैसे कि कल्याण सिख सेना (Khalistan Liberation Force) और खालिस्तान इरादे वाले अन्य छोटे संघ। ये सब अपना लक्ष्य सरकारी दबाव को कम करके पंजाब में अलग राज्य बनवाना चाहते थे। 1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार इस संघर्ष की चरम सीमा था, जब भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर पर हमला किया। उस घटना के बाद कई नेता जेल या मारपीट हुए, लेकिन विचार अभी भी कुछ लोगों में जिंदा रहा।
1990 के दशक में कड़ा सुरक्षा उपाय और जनसमर्थन की कमी ने आंदोलन को धूमिल कर दिया, लेकिन कुछ छोटे समूह अभी भी सीमित क्षेत्रों में सक्रिय हैं। आज के सिख नेता अक्सर सामाजिक मुद्दों पर बात करते हैं – जल समस्या, कृषि सुधार या धर्मिक स्वतंत्रता। वे खुले तौर पर "खालिस्तान" नहीं कहते, बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग रखते हैं।
सरकार ने भी कई कदम उठाए हैं: आर्थिक विकास, भाषा को मान्यता देना और धार्मिक स्थलों का संरक्षण। इससे स्थानीय जनता के बीच अलगाववादी भावना कम हुई है। फिर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ समर्थन मिलने से कभी‑कभी इस विषय में चर्चा बनती रहती है।
अगर आप सिख समुदाय की राजनीति या इतिहास पढ़ना चाहते हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि "अलगाववादी" शब्द के पीछे कई कारण और भावनाएं छिपी हैं – आर्थिक असमानता, पहचान का संघर्ष और कभी‑कभी गलत जानकारी। इन सबको एक साथ देखे बिना सही निष्कर्ष नहीं निकाले जा सकते।
सारांश में कहा जाए तो सिख अलगाववादी नेता सिर्फ़ हिंसा के पहलू से नहीं, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की चाह से भी जुड़े हैं। आज उनका प्रभाव कम हो गया है, लेकिन इतिहास का हिस्सा बना रहता है और हमें इससे सीख लेनी चाहिए कि कैसे संवाद और विकास से असंतोष को घटाया जा सकता है।
भारत ने कैनेडाई अधिकारियों द्वारा अपने राजनयिकों को एक हत्याकांड की जांच में 'Persons of Interest' घोषित करने पर आक्रोश व्यक्त किया है। भारत ने इन आरोपों को 'हास्यास्पद' और 'निर्मूल आरोप' बताया है और कहा कि ये उसके राजनीतिक लाभ के लिए एक संगठित प्रयास हैं। भारत ने अपने उच्चायुक्त के साथ अन्य प्रभावित राजनयिकों को वापस बुला लिया है, जो इस राजनयिक विवाद को और बढ़ा रहा है।
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