विवेकानंद से संबंधित कॉलेजों में पीएम मोदी के ध्यान पर बंटे शिक्षाविद
मई, 31 2024रामकृष्ण मिशन, जिसे स्वामी विवेकानंद ने 1897 में स्थापित किया था, के साथ जुड़े शिक्षाविद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ध्यान लगाने की क्रिया पर विभाजित हो गए हैं। मोदी ने यह ध्यान पिछले गुरुवार शाम को शुरू किया था, जब उन्होंने अपने चुनाव प्रचार अभियान को समाप्त किया। यह स्थान खासा महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं स्वामी विवेकानंद ने 1893 में ध्यान किया था।
इस मुद्दे पर विभाजन की स्थिति स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आई है। रामकृष्ण मिशन से जुड़े कुछ शिक्षाविद, जैसे प्रोफेसर सुभाषण सेंगुप्ता, इसे एक 'सस्ता नाटक' मानते हैं, जिसका उद्देश्य सिर्फ मीडिया का ध्यान आकर्षित करना है। उनके अनुसार, ध्यान की पवित्रता को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करना सही नहीं है। वहीं, इस मुद्दे पर सहमति रखने वाले अन्य शिक्षाविद, जैसे कि सेवानिवृत्त प्रोफेसर अचिंत्यन चटर्जी, मोदी के इस क्रियाकलाप का समर्थन करते हैं। उनका मानना है कि प्रधानमंत्री के माध्यम से ध्यान को बढ़ावा देने से राजनीति में एक नई दिशा और आयाम जुड़ सकते हैं, जिससे युवा वर्ग भी ध्यान की ओर आकर्षित हो सकता है।
हालांकि, कुछ अध्यापक, जैसे कि रामकृष्ण मिशन विद्यामंदिर के अंग्रेजी विभाग के एक प्रोफेसर, इस विवाद को नकारात्मक मानते हैं। उनके अनुसार, ध्यान को राजनीतिक विवाद का विषय नहीं बनाना चाहिए और कोई भी व्यक्ति, जिसमें खुद प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल हैं, इस स्थान पर ध्यान लगाने के लिए स्वतंत्र हैं। इसके लिए विवाद उत्पन्न करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
इस घटना से जो मुख्य प्रश्न उभर रहा है, वह यह है कि क्या धर्म और आध्यात्मिक क्रियाओं को राजनीति से जोड़ना उचित है? जबकि कुछ लोग इसे प्रगति का एक संकेत मानते हैं, वहीं अन्य इसे धार्मिक अस्मिताओं के साथ खिलवाड़ के रूप में देखते हैं।
विवेकानंद रॉक मेमोरियल का ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है। यह वही स्थान है जहां पर युवा नरेंद्रनाथ दत्ता, जो बाद में स्वामी विवेकानंद के रूप में विश्व विख्यात हुए, ने 1893 में ध्यान लगाया था और गहराई से आत्म-चिंतन किया था। रामकृष्ण मिशन की स्थापना का उद्देश्य भी यही है, कि समाज में आध्यात्मिकता और सेवा की भावना का विस्तार किया जाए।
भारतीय राजनीति में स्वामी विवेकानंद का नाम और उनकी शिक्षाओं का महत्व अधिक है। ऐसे में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वहां ध्यान लगाना राजनीतिक दृष्टिकोण से भी विश्लेषण करने योग्य है। सहमति और असहमति के इस दौर में, जो महत्वपूर्ण है वह यह है कि ध्यान और आध्यात्मिकता को किस रूप में समाज और राजनीति के मध्यस्थ बनाते हैं।
भारत में ध्यान की परंपरा प्राचीन और समृद्ध है, और हर समय इसने व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ध्यान के माध्यम से मानसिक शांति और संतुलन की प्राप्ति संभव है और यह आज की तनावपूर्ण जीवन शैली में और भी आवश्यक साबित हो रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। उनके समर्थक इसे सकारात्मक पहल मानते हैं, जो ध्यान और आत्म-साक्षात्कार को बढ़ावा देगा। वहीं, इसके आलोचक इसे राजनीतिक प्रहसन के रूप में देखते हैं, जो सरकार की आर्थिक और सामाजिक नीतियों से ध्यान भटकाने का प्रयास है।
इस विवाद के अलावा, एक महत्वपूर्ण बिंदु यह भी है कि कैसे ध्यान की पुरानी प्रथाओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें आधुनिक जीवन शैली के साथ जोड़ा जा सकता है। यह मुद्दा विश्लेषण के साथ-साथ, ध्यान, मानसिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए भी महत्वपूर्ण है।
इस पूरे मामले पर जनता की राय भी बंटी हुई है। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर विचार व्यक्त करने वाले बहुत से यूजर्स भी इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से देख रहे हैं। कुछ लोग इसे ध्यान को मुख्यधारा में लाने का प्रयास मानते हैं, जबकि अन्य इसे एक भटकाव मानते हैं।
यह देखना उम्मीद है कि इस विवाद का समाज और राजनीतिक क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है। ध्यान और राजनीति के इस मिलाप का भविष्य कैसे आकार लेगा, यह भी महत्वपूर्ण प्रश्न है।