दिल्ली चुनाव 2025: स्वाति मालीवाल का 'द्रौपदी का प्रतिशोध' और आप की हार
फ़र॰, 8 2025
दिल्ली के विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान आम आदमी पार्टी (आप) को बड़ा झटका लगा, जब पार्टी की हार ने दिल्ली की राजनीति को हिला कर रख दिया। इस कहानी का प्रमुख पात्र हैं राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल, जिन्होंने पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अपने सार्वजनिक विद्रोह से खलबली मचा दी। मालीवाल के संघर्ष को महाभारत की द्रौपदी की प्रतिरोध कथा से तुलना किया जा रहा है।
विश्वासघात और निर्वासन
स्वाति मालीवाल, जो कभी आप की नींव का अहम हिस्सा थीं, पार्टी द्वारा हाशिए पर कर दी गईं, जब उन्होंने केजरीवाल की नेतृत्व शैली पर सवाल उठाये। मालीवाल ने पार्टी पर आरोप लगाया कि वे असंतुष्टों का मुंह बंद कर देते हैं, जिसका उदाहरण योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का निष्कासन है। मई 2024 में, मालीवाल ने आरोप लगाया कि एक बैठक के दौरान एक केजरीवाल समर्थक ने उनके साथ शारीरिक दुव्र्यवहार किया, जिसे आप ने खारिज कर दिया। दिल्ली के पर्यावरण संकट पर उनके विरोध प्रदर्शनों ने संबंधों में और खटास डाल दी।
द्रौपदी का प्रतिशोध
मालीवाल की सोशल मीडिया पर साझा की गई पोस्ट, जिसमें 'द्रौपदी का चीरहरण' दिखाया गया था, ने उनकी नाराजगी को दर्शाया। द्रौपदी की तरह, मालीवाल ने आप के भ्रष्टाचार और अधिनायकवाद को उजागर करने की शपथ ली। यही रुख तब और स्पष्ट हुआ जब केजरीवाल अपनी नई दिल्ली सीट भाजपा के प्रवेश वर्मा से हार गए।
इस चुनावी आंदोलन ने दिल्ली की राजनीति में एक बड़ी बदलाव लाने का काम किया। भाजपा ने दोबारा सत्ता में वापसी की, 26 सालों बाद। वर्मा की जीत, जहां उन्हें 45.98% वोट मिले, केजरीवाल के 44.81% मतों के मुकाबले, दर्शाता है कि मतदाता आप से कितना विमुख हो गए थे।
आलोचक आप की हार का मुख्य कारण पार्टी की असफलता को बताते हैं कि उसने मालीवाल की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया। स्वाति मालीवाल की आवाज और आप की आंतरिक कलह को उजागर करने का उनका प्रयास सोशल मीडिया पर और भी बढ़ गया, जो पार्टी के लिए महंगा साबित हुआ। मालीवाल का इस प्रकार का विद्रोह भारतीय राजनीति में आंतरिक संघर्षों के खतरों के प्रतीक के रूप में कायम रहेगा।
Anish Kashyap
फ़रवरी 8, 2025 AT 23:48दिल्ली में जो हुआ वो कोई चुनाव नहीं था बल्कि एक अंतर्द्वंद्व का अंत था। आप ने अपने ही लोगों को दबा दिया और फिर चमत्कार की उम्मीद की। स्वाति मालीवाल को बाहर निकालने की जगह उनकी आवाज़ सुननी चाहिए थी। अब भाजपा वापस आ गई, और हम सब बस देख रहे हैं।
Sanjay Gupta
फ़रवरी 10, 2025 AT 23:19ये सब द्रौपदी कथा का नाटक है। जो लोग अपनी पार्टी के खिलाफ सोशल मीडिया पर धुंधली तस्वीरें डालते हैं, वो देशद्रोही हैं। आप का नेतृत्व कमजोर था, लेकिन स्वाति ने देश की अखंडता के खिलाफ काम किया। भाजपा की जीत भारत की जीत है।
Kunal Mishra
फ़रवरी 12, 2025 AT 00:35क्या आपने कभी गौर किया कि द्रौपदी का चीरहरण तो एक राजनीतिक रूपक है, लेकिन आज के समय में ये सब एक भावनात्मक अभियान है जिसे बड़े बड़े ट्विटर टाइगर्स ने बना दिया? स्वाति मालीवाल ने अपनी निजी असुविधा को एक ऐतिहासिक महाकाव्य में बदल दिया। ये नहीं कि वो गलत हैं, बल्कि ये बहुत बड़ा ड्रामा है।
Poonguntan Cibi J U
फ़रवरी 13, 2025 AT 05:15मैं तो बस यही सोच रहा था कि जब एक इंसान अपनी पार्टी के खिलाफ द्रौपदी की तस्वीर डालता है, तो वो बस अपने दिल की आवाज़ सुन रहा होता है। लेकिन ये सब इतना ज्यादा भावुक क्यों है? मैंने देखा जब उनकी बैठक में उनके साथ शारीरिक दुर्व्यवहार हुआ, और फिर भी कोई नहीं सुना। ये न्याय नहीं है, ये तो एक बर्बरता है। मैं रो रहा हूँ।
Mohit Sharda
फ़रवरी 14, 2025 AT 12:04मैं तो इस बात से सहमत हूँ कि आप के अंदर एक तरह का तनाव था, लेकिन ये द्रौपदी की तुलना थोड़ी ज्यादा है। अगर आप चाहते हैं कि लोग आपकी बात सुनें, तो अपने अंदर के बदलाव की जरूरत है। आप ने अपने साथी को बाहर निकाला, और फिर उनके बिना चुनाव लड़ा। ये तो अपने आप को धोखा देने जैसा है।
Mayank Aneja
फ़रवरी 14, 2025 AT 16:31चुनाव के नतीजे तो स्पष्ट हैं: वोटर्स ने आप के अंदरूनी विभाजन को देख लिया। स्वाति मालीवाल की आवाज़ बुझाने की कोशिश करने के बजाय, आपको उनकी चिंताओं को आंतरिक सुधार के रूप में स्वीकार करना चाहिए था। अब भाजपा के नेता के रूप में वर्मा की जीत एक स्पष्ट संकेत है कि लोग आंतरिक बेअदबी के खिलाफ मतदान कर रहे हैं।
Raghvendra Thakur
फ़रवरी 16, 2025 AT 00:33आप ने अपने ही लोगों को धक्का दिया। अब भाजपा वापस आ गई।
Sanjay Bhandari
फ़रवरी 17, 2025 AT 11:47ये सब तो बस ट्विटर पर चल रहा था। असली दिल्ली वाले तो बस बिजली और पानी के बारे में सोच रहे थे। जब तक आप लोग अपने आप को द्रौपदी बनाते रहोगे, तब तक दिल्ली की सड़कें फटी रहेंगी।
Mersal Suresh
फ़रवरी 19, 2025 AT 09:04इस घटना का विश्लेषण बहुत गहरा है। राजनीतिक संगठनों में आंतरिक विवाद के कारण नेतृत्व का अपघटन होता है। स्वाति मालीवाल के विरोध को नजरअंदाज करना एक संगठनात्मक असफलता का उदाहरण है। यह अनुभव भारतीय राजनीति के लिए एक शिक्षाप्रद अध्ययन है।
Pal Tourism
फ़रवरी 21, 2025 AT 05:22द्रौपदी का प्रतिशोध? बस एक बेवकूफ बन गया। केजरीवाल ने जो किया वो बिल्कुल सही था। स्वाति को बाहर निकालना जरूरी था। अब भाजपा वापस आ गई तो क्या करेंगे? फिर से बेवकूफी करेंगे? लोगों को अपने घरों में बैठे रहने दो।
Sunny Menia
फ़रवरी 22, 2025 AT 03:32मैं समझता हूँ कि आप के अंदर बहुत सारे भावनात्मक तनाव थे, लेकिन अगर आप अपने लोगों को निकाल देते हैं, तो आप अपने आप को भी निकाल रहे होते हैं। ये द्रौपदी कथा तो बहुत भावुक है, लेकिन असली समस्या ये है कि आपने अपने साथियों को बर्बाद कर दिया।
Abinesh Ak
फ़रवरी 23, 2025 AT 04:14ये सब एक आधुनिक राजनीतिक ड्रामा है, जिसमें ट्राजिक हीरोइन के रूप में स्वाति मालीवाल ने एक निर्माणात्मक विद्रोह का नेतृत्व किया। आप के अंदरूनी राजनीतिक असंगठन ने एक बहुत बड़ी जनता के विश्वास को खो दिया। ये न केवल एक चुनावी हार है, बल्कि एक नैतिक अपराध है।
Vishal Bambha
फ़रवरी 23, 2025 AT 18:28ये तो बस एक बात है - जब तुम अपने अंदर के लोगों को नहीं सुनते, तो बाहर के लोग तुम्हें बर्बाद कर देते हैं। स्वाति ने बस अपनी आवाज़ उठाई, और आप ने उसे चुप करा दिया। अब भाजपा वापस आ गई। अब तो बस रो लो।
Pritesh KUMAR Choudhury
फ़रवरी 25, 2025 AT 03:20मैं तो बस यही कहना चाहता हूँ कि ये द्रौपदी की तुलना थोड़ी ज्यादा है। लेकिन अगर आप चाहते हैं कि लोग आपकी बात सुनें, तो अपने अंदर के बदलाव की जरूरत है। आप ने अपने साथी को बाहर निकाला, और फिर उनके बिना चुनाव लड़ा। ये तो अपने आप को धोखा देने जैसा है। 😔
Reetika Roy
फ़रवरी 26, 2025 AT 09:34हमें अपने आंतरिक विवादों को देखने की जरूरत है। राजनीति बस वोटों का खेल नहीं है। ये लोगों के विश्वास का खेल है। और हमने उसे खो दिया।
Vishal Raj
फ़रवरी 27, 2025 AT 11:19क्या आपने कभी सोचा कि द्रौपदी ने अपना चीरहरण देखा और फिर भी बच गई? शायद स्वाति भी बच जाएंगी। बस एक बात याद रखो - जो अपने आप को बर्बाद नहीं करता, वो कभी नहीं हारता।
AnKur SinGh
फ़रवरी 27, 2025 AT 13:27इस घटना के विश्लेषण में एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात छूट गई है: आम आदमी पार्टी के अंदर नेतृत्व का अकेलापन। जब एक नेता अपने साथियों के विचारों को दबा देता है, तो वह अपने संगठन के जीवन बल को नष्ट कर देता है। स्वाति मालीवाल की आवाज़ एक संकेत थी - एक अंतर्द्वंद्व का। उनके निष्कासन ने न केवल उनकी आत्मा को तोड़ा, बल्कि पार्टी के लिए एक अनुपूरक शक्ति को भी खो दिया। जब एक संगठन अपने आंतरिक आलोचकों को दुश्मन बना लेता है, तो वह अपने भविष्य को नष्ट कर देता है। इसलिए, यह चुनाव केवल एक वोटों का नतीजा नहीं, बल्कि एक नैतिक और नीतिगत असफलता का परिणाम है। यह भारतीय राजनीति के लिए एक गहरा सबक है।
Vallabh Reddy
फ़रवरी 27, 2025 AT 15:40मैं आपके विश्लेषण के साथ पूरी तरह सहमत हूँ। द्रौपदी की कथा एक विशिष्ट राजनीतिक रूपक है, लेकिन इसका उपयोग एक व्यक्तिगत विद्रोह को नाटकीय बनाने के लिए नहीं होना चाहिए। राजनीति में विश्वास और सहयोग का निर्माण ही लंबे समय तक चलने वाली शक्ति है। जब एक नेता अपने साथियों को अपमानित करता है, तो वह अपने संगठन की आत्मा को नष्ट कर देता है।